Mung Variety Pusa 1641: किसानों को मूंग की खेती से बंपर पैदावार, गर्मी के मौसम में पूसा 1641 किस्म, जानें इसकी खासियत

Mung Variety Pusa 1641: किसानों को मूंग की खेती से बंपर पैदावार, गर्मी के मौसम में पूसा 1641 किस्म, जानें इसकी खासियत

गर्मी का मौसम शुरू हो चुका है और रबी की फसलों की कटाई के बाद किसानों ने इस मौसम में मूंग की खेती करना पसंद करते हैं। और गर्मी के मौसम में यह फसल बहुत ही लाभकारी रहती है। तकरीबन खेत अब खाली हो चुके हैं किसानों के द्वारा कई राज्यों में मूंग की बुवाई किया जा चुका है। वहीं उत्तर भारत के हरियाणा, राजस्थान, पंजाब में अभी किसान गेहूं निकालने के बाद मूंग की खेती के लिए खाली पड़े खेतों में इसकी खेती के साथ ही अतिरिक्त लाभ ले सकते हैं। और आगामी आने वाली धान या अन्य फसलों में खर्च होने वाले पूंजी के लिए भी उपयोग में ले सकते हैं।

Mung Variety Pusa 1641 जानकारी

मूंग की खेती से किसानों को क्या-क्या बेनिफिट मिल सकते हैं, और इस की खेती के लिए किसानों को उन्नत किस्म के बीज का चुनाव और सही समय के साथ खेती व कीट प्रबंधन और अन्य तरह की पूरी जानकारी इस रिपोर्ट के माध्यम से आपको दिया जाएगा। बता दे कि यह जानकारी पूरा संस्थान के विशेषज्ञों के सलाह के आधार पर किया जा रहा है।

किसान सही समय के साथ मूंग की खेती व वैरायटी

किसानों को मूंग की खेती सही समय को वैरायटी का चुनाव सबसे जरूरी होता है। क्योंकि गर्मी के मौसम में की जाने वाली मूंग की किस्म 55 से 60 दिन में ही तैयार हो जाता है। वहीं किसानों के द्वारा अगर खरीफ या फिर रबी मौसम में बिजाई करने वाली वैरायटी का उपयोग किया जाता है। तो फसल पकने में ज्यादा समय लगेगा। जिसके चलते सीधा पैदावार पर पड़ता है। ऐसे में किसानों को गर्मी के मौसम में अगर मूंग की खेती करनी है तो विशेष रूप से विकसित किस्म का ही चुनाव करना होगा।

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मूंग का किस्म पूसा 1641

Mung bean variety Pusa 1641 Details: किसान अपने मूंग फसल में अच्छा उत्पादन के लिए पूसा संस्थान की तरफ से 1 उन्नत प्रजाति पूसा 1641 तैयार किया जो कि विशेष कर गर्मी वाले दिनों में फसल के लिए तैयार किया गया है। किसान इस किस्म की बुवाई 10 से लेकर 15 अप्रैल तक करना होता है। और यह दिल्ली एनसीआर क्षेत्र के लिए सबसे उपयुक्त माना गया है।

मूंग का यह उन्नत वैरायटी में खासियत की बात करें तो इसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा रहती है। और मूंग किस्म में येलो मोजैक वायरस रोगों के प्रति रोधक मुख्य रूप से है। किसान इसकी बुवाई के लिए पूसा संस्थान से बीज को प्राप्त कर सकते हैं और किसान खेती कर अधिक उत्पादन प्राप्त कर पाएंगे।

खाद प्रबंधन के साथ मिट्टी के जांच

किसानों को अपने भूमि में इसकी खेती करने से पहले ही मिट्टी का जांच जरुर करवाना चाहिए। क्योंकि जिस खेत में पहले से ही गेहूं का फसल बुवाई किया गया है। जिस भूमि पर नाइट्रोजन की जरूरत नहीं होती है। वहीं भूमि में जिंक की कमी देखने को मिल सकती है। इसके अलावा किसान अपनी नजदीकी कृषि विभाग में मिट्टी परीक्षण के जरिए भूमि में जिंक या फिर अन्य प्रकार के पोषक तत्वों को डाल सकते हैं। और किसान अपनी भूमि में उचित खाद प्रबंधन किए जाने से उपज में बढ़ोतरी के साथ-साथ की मिट्टी की उर्वरकता में भी सुधार होता है।

सिंचाई को लेकर विशेष प्रबंध करें

किसानों को किसी भी फसल में सिंचाई को लेकर विशेष प्रबंध की आवश्यकता रहती है। इसी प्रकार से मूंग की खेती के लिए भी सिंचाई करना आवश्यक हो जाता है। किसानों को सबसे पहले भूमि में बुवाई से पहले पहली सिंचाई यानी पलेवा करने के बाद खेत को तैयार करें।

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अपने खेतों में मूंग की बुवाई करने के पश्चात 20 से 25 दिन तक पहली सिंचाई करने से बचाव करना चाहिए। क्योंकि अधिक जल्दी पानी से मिट्टी भी सख्त होता है। जिसका सीधा सा उत्पादन पर असर होगा। किसानों को फसल में होने वाले विकास के मुताबिक ही आवश्यकता पड़ने पर सिंचाई करें। किसान जब फसल 50 दिन के करीब हो जाए तो सिंचाई रोक देना चाहिए। क्योंकि मूंग फसल पककर 60 से 65 दिन में तैयार हो जाएगा। इसके बाद किसानों को कटाई करना होता है।

फसल में कीट व रोग नियंत्रण करना

किसानों के द्वारा गर्मी के मौसम में मूंग की फसल लगाने के पश्चात कीटों का प्रकोप भी ज्यादा रहता है। ऐसे में किसानों को आसपास अन्य फसल में कम बुवाई होता है तो कीट व अन्य रोग फसल पर अंडे देना आरंभ कर देती है। जिससे फसल को नुकसान हो सकता है। ऐसे में किसानों को अपनी फसल में समय-समय पर निगरानी करते रहना चाहिए।

इसके अलावा किसानों को अपनी फसल में कीट या फिर इसके अलावा रोकथाम को लेकर सिस्टेमिक कीटनाशक के इस्तेमाल करने के लिए 20 से लेकर 25 दिन के अंतर पर कर सकते हैं। जिससे कीटों के प्रकोप को प्रभावित तौर पर नियंत्रित किया जा सकता है। वही किसान अगर मूंग की किस्म पूसा 1641 का चुनाव करते हैं तो यह अधिकतर कीटों के प्रतिरोधी किस्म है और यह रोगों से खतरों को कम करता है।

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