Arhar Sowing: किसान करें अरहर नई किस्म का बुवाई, मिलेगा ज्यादा गर्मी में बंपर उत्पादन, जानें अरहर की नई किस्में 2025

Arhar Sowing: किसान करें अरहर नई किस्म का बुवाई, मिलेगा ज्यादा गर्मी में बंपर उत्पादन, जानें अरहर की नई किस्में 2025

देश में किसानों के द्वारा खरीफ सीजन बुवाई को लेकर पूरी तैयारी की जा चुकी है। वहीं अधिकतर फसलों की बुवाई अभी भी शेष रह चुका है । ऐसे में अगर किसानों को अरहर खेती की बुवाई करने के बारे में सोच रहे हैं। उनके लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि अच्छी पैदावार देने वाले बीज चयन करना चाहिए। इसके साथ ही बीजोपचार, उर्वरक प्रबंधन और सिंचाई किए जाने की व्यवस्था को पूरा करना चाहिए।
उसी के साथ तुअर यानी अरहर फसल की बुवाई करने का सही तरीका व किस्म, समय के साथ किया जाना चाहिए।

अरहर की नई किस्में 2025

अरहर की खेती को लेकर विशेषज्ञों का मानना है कि किसानों को पानी के निकासी की व्यवस्था करना बहुत जरूरी होता है। क्योंकि खेत में अगर पानी रुक जाता है, तो अरहर की फसल में रोग लगने के साथ-साथ नुकसान की संभावनाएं में वृद्धि हो जाती है। इसके अलावा किसानों को इसकी बुवाई से पहले भूमि का पीएच 5.0 से लेकर 8.0 के बीच रहना चाहिए।

किसान उन्नत किस्म से पाएं बंपर पैदावार

आज के समय पर किसानों को अपनी किसी भी फसल में अच्छा उत्पादन प्राप्त करने हेतु नई प्रजातियों का चयन करना बड़ा फायदा का साधन बन गया है। इसी तरह से अरहर बीज का उपयोग नई वैरायटी शामिल करना चाहिए।

बता दें कि पूसा संस्थान के द्वारा वर्ष 2017 के दौरान पूसा अरहर-16 किस्म जारी किया गया था। यह को किस्म औसत प्रति हेक्टेयर 15 से लेकर 18 किलोमीटर तक उत्पादन होता है। और यह केवल 110 से लेकर 120 दिन में ही पक्का तैयार हो जाता है।

वहीं इसके अलावा किसानों को अरहर खेती के लिए कई प्रमुख वैरायटियों शामिल हैं। जो नीचे दिया गया है।

1). पूसा-991
2). पूसा-992
3). पूसा-2002

लम्बी अवधि में अरहर किस्में

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की ओर से विकसित की गई मालवीय अरहर-13 व मालवीय अरहर-6

नरेंद्र कृषि विश्वविद्यालय की ओर से विकसित किया गया नरेंद्र अरहर-1 व नरेंद्र अरहर-2

अरहर खेती में नई किस्म मिलेगा ज्यादा पैदावार

बता दें कि भारत देश में अरहर की फसल में अच्छे उत्पादन को लेकर इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर द सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स (इक्रीसेट) के वैज्ञानिकों के द्वारा अरहर की किस्म ‘आईसीपीवी 25444’ को पहली गर्मी को सहन करने वाली किस्म का तैयार किया गया है।

इस विशेष तरह की किस्म को भीषण गर्मी के मौसम यानी कि 45 डिग्री सेल्सियस के तापमान तक सहन करने का सक्षम होगी। वही इसके बुवाई करने के बाद किसानों को 125 दिन में ही पककर तैयार हो जाएगा।

इस किस्म को लेकर इक्रीसेट की ओर से बताई गई जानकारी के मुताबिक अरहर का यह वैरायटी देश में तेलंगाना, कर्नाटक व ओडिशा में सफल परीक्षणों के दौरान प्रति हेक्टेयर 2 टन का उत्पादन प्राप्त हुआ है।

यह किस्म भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में अरहर की ऐसी पहली किस्म जो की गर्मी रोधी है। किसानों के लिए जलवायु परिवर्तन होने वाली चुनौतियां के मध्य यह फसल एक बड़ी राहत के तौर पर देखा जा रहा है। और भीषण गर्मी में भी अच्छा उत्पादन देने की क्षमता वाली किस्म है।

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किसान अच्छे बीज का चयन के साथ बीजोपचार आवश्यक

किसानों को अच्छी पैदावार के लिए फसल का प्रमाणित व क्वालिटी का बीज ही उपयोग में लाना चाहिए। जिसके लिए किसानों को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, कृषि विज्ञान केंद्र या फिर कृषि विश्वविद्यालय से बीच को लेकर ही बुवाई करें।

किसानों को अपनी भूमि में बुवाई से पहले बीजोपचार जरूरी है। जिसके लिए किसानों को 2-2.5 ग्राम कार्बेंडाजिम में बीज प्रति किलोग्राम से अच्छे से मिलाकर करना चाहिए।

वही इसके अलावा 10 किलोग्राम बीज को राइजोबियम कल्चर 200 ग्राम के अनुसार लगाना चाहिए। जिसको आधा लीटर पानी जो कि गुनगुना पानी से चिपचिपा पदार्थ यानी गोंद के साथ मिलकर ठंडा करें। इसके पश्चात कल्चर को डालकर बीज को मिलाकर छायादार जगह पर सुखने के बाद बुवाई करना चाहिए।

खेत को तैयार करने के साथ-साथ बुवाई करने का सही समय

किसान को अपनी भूमि पर अरहर फसल को बुवाई करने से पहले गहरी जुताई मिट्टी को पलटने वाली हाल या फिर डबल डिस्क के माध्यम से करें इसके पश्चात कल्टीवेटर के साथ दो से तीन बार अच्छी तरह से मिट्टी को भी भुरभुरा बना ले और सबसे अंत में रोटावेटर या फिर अन्य कृषि यंत्र के साथ समतल करना चाहिए।

किसानों को अपनी भूमि में अरहर की खेती के लिए बुवाई के समय एक पंक्ति से दूसरी पंक्ति की दूरी 40 से लेकर 60 सेमी होना चाहिए। वही एक पौधे से दूसरे पौधे की दूरी 20 से 25 सेंटीमीटर होना चाहिए। वही बीज की गहराई की बात करें तो 4 से लेकर 5 सेंटीमीटर से ज्यादा नहीं होना चाहिए।

किसान अपने खेत बुवाई के दौरान पर्याप्त नमी का होना बहुत आवश्यक है। ताकि अंकुरण को बेहतर परिणाम प्राप्त हो सके। वहीं किसानों को बारिश के मौसम के दौरान अरहर फसल की बुवाई मेड विधि से करने से जल भराव की समस्या नहीं रहता है। वहीं फसल के सुरक्षित रहने की संभावनाएं भी ज्यादा रहती है।

खाद पानी की आवश्यकता कितनी

किसानों को अरहर की बढ़िया पैदावार प्राप्त करने के लिए नाइट्रोजन, पोटाश, फास्फोरस की आवश्यकता रहेगी। वहीं किसानों को खाद की आवश्यकता के अनुसार उपयोग करने के लिए मिट्टी का प्रशिक्षण आवश्यक कारण वही अगर ऐसा नहीं कर पाते हैं, तो सामान्यतः नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर 15 से 20 किलोग्राम, फास्फोरस की मात्रा 50 किलोग्राम को दिया जा सकता है।

बताई गई नाइट्रोजन की मात्रा देने के बाद अतिरिक्त आवश्यकता नहीं रहता। वहीं इसके अलावा भूमि में अगर पोटाश की कमी दिखाई दे तो प्रति हेक्टेयर 20 से 25 किलोग्राम दिया जा सकता है।

अरहर की खेती में बारिश के दौरान अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं रहता। ऐसे में किसानों को अगर बुवाई करने की 20 से 25 दिन के दौरान बारिश नहीं होता है तो हल्की सिंचाई किया जा सकता है।

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